माननीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2022 को पेश किया, जिसके अंतर्गत ऑटो सेक्टर को उभारने के लिए कोई मुख्य घोषणाएं नहीं की गई है। साथ ही कुछ ऐलान ऐसे किए गए जिसका असर ऑटो इंडस्ट्री पर पड़ने वाला है। सरकार लगातार स्थानीयकरण और ‘गो लोकल’ पर ज़ोर दे रही है। ऑटो सेक्टर के लिए केंद्रीय बजट 2022 के फ़ायदे और नुक़सान इस प्रकार हैं-
क्या है सही?
वित्त मंत्री ने ख़ुलासा किया कि, सरकार जल्द ही देश में इलेक्ट्रिक ईकोसिस्टम को लाभ पहुंचाने के लिए बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी को पेश करने जा रही है। सीतारमण ने यह भी कहा, कि ‘इंटरऑपरेबिलिटी मानकों को तैयार किया जाएगा', जो इलेक्ट्रिक वीइकल निर्माताओं द्वारा समान मापदंडों को पालन करने की ओर संकेत करता है। सरकार सर्विस के तौर पर बैटरी व एनर्जी के लिए प्राइवेट सेक्टर को टिकाऊ और प्रगतिशील बिज़नेस मॉडल के प्रति प्रेरित करेगी।
अक्टूबर 2022 से अमिश्रित ईधन के उत्पादक शुल्क पर 2 रुपए प्रति लीटर अधिक देना होगा। इसका मक़सद इथेनॉल-मिश्रित ईधन के उत्पादन और इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना है। इसके अतिरिक्त निर्माताओं को फ़्लेक्स-इंजन के साथ मिश्रित ईधन पर चलने वाले वाहनों के प्रोडक्शन के लिए प्रोत्साहित करना है। इससे ईंधन आयात बिल को कम करने में सहायता मिलेगी। हाल ही में सरकार ने साल 2025 तक गैसोलाइन के साथ 20 प्रतिशत इथेनॉल-मिश्रण प्राप्त करने के सुझाव को भी मंजूरी दी थी।
सरकार ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम में इलेक्ट्रिक वीइकल्स को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया है। आईसीई वर्ज़न के अलावा इलेक्ट्रिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम से इमिशन लेवल में कमी आएगी। इसके अलावा वित्त मंत्री ने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में 20,000 करोड़ रुपए निवेश का ऐलान किया है। इसके अंतर्गत साल 2022-23 में 25,000 किमी तक राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क पर ख़र्च किए जाएंगे।
क्या रह गई कमी?
ऑटोमोटिव पार्ट्स पर जीएसटी स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया है और नए इलेक्ट्रिक वीइकल के इंसेंटिव्स के साथ-साथ ड्यूटी स्ट्रक्चर पर किसी प्रकार का विचार नहीं किया गया है। साथ ही बढ़ रहे इनपुट लागत को कम करने पर भी ध्यान नहीं दिया गया है। लेकिन स्वैपेबल-बैटरी के ऐलान से बैटरीज़ को आसानी से स्विच करने में मदद मिलेगी, जो दो-पहियों व तीन-पहियों के लिए बेहतर होगा।
निष्कर्ष
बजट 2021 की तरह ही सरकार ने पर्सनल इंकम टैक्स स्लैब्स के लिए इस बार भी टैक्स स्ट्रक्चर पर ध्यान नहीं दिया है। यह मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए ‘ना घाटा-ना फ़ायदा’ की स्थिति को दर्शाता है। नए प्रावधान से करदाता निर्धारण वर्ष से दो साल के अंदर अपडेटेड रिटर्न को फ़ाइल कर सकते हैं। इससे ऑटोमोटिव इंडस्ट्री के टैक्स स्ट्रक्चर में कुछ राहत मिलती दिख रही है।
अनुवाद- धीरज गिरी