क्या सचमुच आने वाला वक़्त ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में डिजिटल बिक्री और ख़रीदारी का होगा? क्या कोरोना ने ऑटो इंडस्ट्री का चेहरा बदलकर रख दिया है? कोरोना के चलते जहां मार्केट में मंदी का माहौल था, कई मैन्युफ़ैक्चरर्स ने इस दौरान ऑनलाइन बुकिंग और कार ख़रीदने की सुविधा देकर सवाल खड़ा कर दिया, कि क्या अब डीलरशिप्स के बिना भी कार की बिक्री संभव है?
डिजिटल भारत में जहां प्रति दिन औसतन सबसे ज़्यादा इंटरनेट डेटा का इस्तेमाल किया जाता है, वहां ऑनलाइन कार ख़रीदने में ज़्यादा रुचि दिखाने वाले आंकड़े लाज़िमी हैं। इस कठिन दौर में सुरक्षा के लिहाज़ से ग्राहक घर बैठे ही पूरी तरह से सेनिटाइज़्ड कार्स पाना पसंद कर रहे हैं। द ईकोनॉमिक टाइम्स के एक सर्वे के मुताबिक़, 90 प्रतिशत कार की बिक्री डिजिटली प्रोत्साहित होती है। अब इस आंकड़े को देखते हुए तुरंत निष्कर्ष पर आने की बजाय यह समझना ज़रूरी है, कि प्रोत्साहित होने और पूरी तरह से डिजिटली ख़रीदे जाने में बहुत अंतर है। ग्राहक यदि ऑनलाइन गाड़ी की जानकारी भी जुटाता है, तो उसे डिजिटली प्रोत्साहित होने की कैटेगरी में शामिल किया जाता है।
कोरोना से ऑनलाइन बाज़ार को मिला बढ़ावा!
ब्रिजेश गुब्बी सुरेश, एवीपी ऐंड ग्रुप हेड- न्यू बिज़नेस स्ट्रैटजी, हृयूंडे मोटर इंडिया लिमिटेड ने बताया, 'मार्च में 'क्लिक टू बाय' के पूरे देश में लॉन्च के बाद से हमें अच्छे नतीजे देखने को मिले हैं। साइट पर आने वाले इच्छुक ग्राहकों के आंकड़े में बढ़ोतरी हुई है। पिछले कुछ समय में लोगों के ख़रीदारी करने के तरीक़े पर डिजिटल मॉडल्स का बहुत असर हुआ है।' ग्राहक अब ऑटोमोबाइल्स जैसी बड़ी चीज़ें भी ऑनलाइन ख़रीदने लगे हैं।
वहीं किया मोटर्स के वाइस प्रेसिडेंट और हेड मार्केटिंग व सेल्स हेड मनोहर भट्ट का कहना है, 'कोरोना के दौरान डिजिटल सेलिंग का रीस्पॉन्स ठीक रहा है, लेकिन बहुत ज़्यादा प्रभावी नहीं है। क्योंकि आज भी भारतीय ग्राहक ख़ुद डीलरशिप्स पर जाकर कार को जांचना पसंद करता है।'
हृयूंडे ने अपने डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को बाज़ार में सबसे मज़बूत दावेदार बनाने के लिए उसपर कुल 7 करोड़ से ज़्यादा रूपए ख़र्च किए हैं। अन्य कार निर्माता कंपनीज़ भी ख़ुद को डिजिटली स्थापित करने के लिए कमोबेश इसी तरह की राशि ख़र्च कर रही हैं। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है, कि वे डिजिटल मार्केट को सिर्फ़ कोरोना इफ़ेक्ट के तौर पर नहीं, बल्कि भविष्य के रूप में देख रही हैं। तो क्या ऑनलाइन कपड़े व फ़र्नीचर ख़रीदने वाला भारतीय ग्राहक अब गाड़ी भी ऑनलाइन ख़रीदने के लिए पूरी तरह से तैयार है?
ग्राहक की चाह, बदलेगी डीलर्स की राह
गूगल कन्टार टीएनएस द्वारा किए गए एक अध्ययन में शामिल 44 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा, कि उन्हें विकल्प मिले तो वे ऑनलाइन ही गाड़ी ख़रीदना पसंद करेंगे। गूगल का ही एक सर्वे कहता है, कि 65 प्रतिशत ख़रीददार डीलर्स की बजाय ऑनलाइन गाड़ियों की जानकारी जुटाना पसंद करते हैं। इस पर मारुति के एक डीलर का कहना है, 'बेशक़ हमारे पास आने वाले ज़्यादातर ग्राहक पहले से ही अच्छी ऑनलाइन रिसर्च करके आते हैं, लेकिन फिर भी अंतिम फ़ैसला वह यहां आकर हमसे बातचीत करके ही लेना पसंद करते हैं।' इस व्यवहार के पीछे की वजह को मनोहर भट्ट समझाते हुए कहते हैं, 'पहले भी ग्राहक ऐसा करते रहे हैं। लेकिन तब उनके पास ख़रीदने के विकल्प उपलब्ध नहीं थे। अब उसे फ़ाइनेंस से लेकर गाड़ी के रंग विकल्प चुनने तक का मौक़ा ऑनलाइन मिल रहा है। फिर भी भारत में कार ख़रीदने को लेकर ग्राहक ख़ुद तसल्ली करना पसंद करता है।'
सामान्य तौर पर डीलर्स द्वारा मिलने वाला भरोसा भावनात्मक रूप से ग्राहकों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। ग्राहक को लगता है, कि गाड़ी में किसी भी तरह की दिक़्क़त होने पर वह सीधे डीलर के पास पहुंच सकता है। इस बात को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, कि भारत में कार ख़रीदने को ज़रूरत से ज़्यादा एक स्टेटस सिम्बल की तरह देखा जाता है। डीलरशिप्स पर जाकर कार की डिलिवरी लेने को एक पारिवारिक उत्सव की तरह मनाया जाता है। ऐसे में एक सुबह अचानक नई गाड़ी का पार्किंग में आकर खड़ी हो जाना, भारतीय ग्राहकों के लिए सुखद बदलाव नहीं होगा। इन व्यवहारिक पहलुओं के अलावा एक बड़ा पहलू अच्छी डील पाना भी है। मोल-भाव के शौक़ीन भारतीयों को ऑनलाइन ऑफ़र्स पाकर भी वह संतुष्टि मिलना मुश्क़िल है, जो वे ख़ुद डीलर से मोल-भाव कर पा सकते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं, कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स ने ग्राहकों की सुविधा ज़रूर बढ़ाई है। अब फ़ाइनेंस, आईडी की जांच, गाड़ी का पंजीकरण से जुड़े पेपर वर्क के लिए ग्राहक को ज़्यादा वक़्त डीलरशिप्स पर नहीं गुज़ारना पड़ता है।
लॉकडाउन के बाद बदलता ऑटो इंडस्ट्री का चेहरा
अटकलें लगाई जा रही हैं, कि लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद लोग सार्वजनिक वाहनों की बजाय अपनी गाड़ी से यात्रा करना ज़्यादा पसंद करेंगे। इस बात से काफ़ी मैन्युफ़ैक्चसर्स भी इत्तेफ़ाक़ रखते हैं और चाइना में भी लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद कुछ इसी तरह की स्थिति देखने को मिली। लेकिन विशेषज्ञों की मानें, तो कार सेल में उल्लेखनीय उछाल आने की उम्मीद करना भी मूर्खता होगी। कोरोना से पूरी तरह छुटकारा पाने की उम्मीद अभी दूर-दूर तक नज़र नहीं आती, ऐसे में देश से लेकर प्रति व्यक्ति की अर्थव्यवस्था डगमगा सकती है। इसलिए कार जैसे बड़े ऐसेट पर तुरंत ही लोग ख़र्च करेंगे, यह कहना तर्कपूर्ण नहीं होगा। हां, सावधानी बरतने के लिए ग्राहक संभवत: ऑनलाइन गाड़ी की पूरी जांच-पड़ताल करे। लेकिन डीलरशिप्स की मानें, तो अब भी डिलिवरी के लिए ग्राहक ख़ुद आकर गाड़ी में किसी भी तरह का कोई निशान या गड़बड़ी नहीं है, यह देखकर ही लेने की चाह रख रहे हैं।
प्रभावी विकल्प बनकर उभरेगा ऑनलाइन बाज़ार
फ़ाडा के वाइस प्रेसिडेंट विंकेश गुलाटी ने एक साक्षात्कार में कहा, 'कोरोना ने काफ़ी कुछ बदल दिया है और किसी को नहीं पता कि आगे चलकर स्थिति क्या होगी। इतना ज़रूर है, कि कम-से-कम अगले तीन से छह महीनों के लिए डीलरशिप्स की ज़रूरत केवल गाड़ी डिलिवर करने तक के लिए होगी।' मैन्युफ़ैक्चसर्स को भी लगता है, कि बहुत तेज़ गति से कोई बदलाव नहीं आएगा। कुछ निर्मााताओं ने तो आश्वस्त करते हुए कहा, कि वे फ़िलहाल डीलरशिप्स की व्यवस्था को लेकर कोई बड़ा फ़ैसला नहीं करने वाले हैं। विकसित देशों में भी डिजिटल कार की बिक्री का आंकड़ा बहुत चौंकाने वाला नहीं रहा है। बाक़ी बाज़ारों में ऑनलाइन बाज़ार के खुलने से दुकानें बंद हो गई हों, ऐसे नतीजे देखने को नहीं मिले हैं। ग्राहकों की ख़रीदारी का पैटर्न एक व्यवहार है, जो रातोंरात बदलने वाला नहीं है। हमारे अनुसार, डिजिटल कार ख़रीदना जल्द ही नया नॉर्मल बन जाएगा। और आंकड़ों व ट्रेंड्स को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है, कि यह डीलरशिप्स की जगह लेने की बजाय अतिरिक्त सेल्स चैनल की तरह काम करेगा। लेकिन कार निर्माताओं व ग्राहकों के बीच भरोसे व संपर्क के माध्यम के रूप में खड़े डीलरशिप्स का ख़त्म होना बहुत मुश्क़िल ही लगता है।