हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वीइकल्स के आने से सभी कंपनीज़ अब धीरे-धीरे डीज़ल गाड़ियों को बंद कर रही हैं। बता दें कि सरकार ने हाल ही में साल 2027 तक 10 लाख से ज़्यादा जनसंख्या वाले शहरों में ग्रीन मोबिलिटी के लिए डीज़ल वीइकल्स पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखा है।
सरकार ने कहा है, कि यह प्रस्ताव भविष्य को ध्यान में रखते हुए रखा गया है। सभी स्टेकहोल्डर्स व मैन्युफ़ैक्चरर्स से विचार-विमर्श करने के बाद ही डीज़ल वीइकल्स की रोक पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
मौजूदा समय में भारत की कुल कार बिक्री में डीज़ल वीइकल्स का हिस्सा 40 प्रतिशत के क़रीब है, जिसमें कमर्शियल व प्राइवेट वाहन शामिल हैं। बता दें, कि ट्रांसपोर्ट सेक्टर का संचालन क़रीब 80 प्रतिशत डीज़ल पर निर्भर करता है। इसे ध्यान में रखते हुए सही योजना के साथ आगे बढ़ना होगा।
डीज़ल वाहनों के फ़ायदे व नुक़सान
फ़ायदे
डीज़ल इंजन्स को सीआई (कम्प्रेशन इग्निशन) इंजन्स कहा जाता है। स्पार्क इग्निशन की तुलना में इसका कम्प्रेशन अनुपात ज़्यादा है, जिसके चलते डीज़ल इंजन्स ज़्यादा टॉर्क जनरेट करता है। यही कारण है, कि कमर्शियल वीइकल्स में डीज़ल इंजन्स का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा दूसरे ईंधन की तुलना में इस पर इसका मेंटेनेंस ख़र्च कम है।
नुक़सान
सीआई इंजन्स काफ़ी धुआ छोड़ता है और यह इसका सबसे बड़ा नुकसान है। इसके अंदर से कार्सिनोजेन्स, नाइट्रस ऑक्साइड और सूट जैसे गैस बाहर निकलते हैं, जो पर्यावरण को हानि पहुंचाने के साथ-साथ वायु और ध्वनि प्रदूषण फ़ैलाते हैं। इन गैसों से मनुष्य व जानवरों में सांस से संबंधित बिमारी होती है। इसके अलावा क्लाइमेट चेंज व ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए भी ज़िम्मेदार है।
कब पेश हुई पहली डीज़ल कार?
वर्ष 1930 में पहली बार डीज़ल वीइकल्स को पेश किया गया था। साल 1935 में 260D मॉडल का प्रोडक्शन शुरू कर दिया गया और फ़रवरी 1936 में पहला रेगुलर-प्रोडक्शन डीज़ल कार का प्रीमियर किया गया। बेहतर टॉर्क व माइलेज के लिए डीज़ल ज़्यादातर कमर्शियल व पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
डीज़ल के बंद होने से क्या पड़ेगा प्रभाव?
डीज़ल के बंद होने से ज़ीरो इमिशन के लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाबी मिलेगी। इससे हाइब्रिड व इलेक्ट्रिक वीइकल्स का प्रोडक्शन बढ़ेगा और ग्रीन मोबिलिटी का उद्देश्य पूरा होगा।