कार ख़रीदना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान प्रक्रिया हो सकती है, तो कुछ के लिए यह बेहद पेचीदा। ग्राहकों की बढ़ती ज़रूरतों को देखते हुए बाज़ार में विकल्प भी बढ़ते जा रहे हैं। गाड़ियों को ख़रीदने के अलावा भी कई ऐसे विकल्प फलने-फूलने लगे हैं, जो अपनी पार्किंग में अपनी गाड़ी की परिभाषा को काफ़ी बदल रहे हैं। आजकल कार लीज़िंग की प्रक्रिया भी काफ़ी चर्चा में है।
हालांकि, पहले कार लीज़ करने की सुविधा कुछ घंटों या दिनों के लिए ही थी, अब नई कंपनीज़ व ब्रैंड्स इन गाड़ियों को महीनों व सालों के लिए पास रखने की सुविधा दे रहे हैं। इनकी क़ीमतें भी काफ़ी आकर्षक हैं, क्योंकि आपको गाड़ी की पूरी क़ीमत नहीं चुकानी होती। केवल लीज़ की राशि का भुगतान करना होता है, जिसमें गाड़ी की मेंटेनेन्स भी शामिल होती है। गाड़ी ख़रीदने या लीज़ पर लेने की बीच की तुलना के पहले हिस्से में हम आपके सामने दोनों के बीच के अंतर के बारे में बात करेंगे।
कार ख़रीदने के लिए लोन लेने और गाड़ी को लीज़ पर लेने में किन चीज़ों की ज़रूरत होती है? कार लीज़ पर लेने के लिए आपको हर महीने किराए का भुगतान करना होगा व आपके क्रेडिट स्कोर का भी अच्छा होना ज़रूरी है। वहीं लोन लेने के लिए आपके एम्पलॉयर द्वारा पेमेंट स्लिप, ऑफ़िस आईडी कार्ड, फ़ॉर्म 16, पिछले छह महीनों का बैंक स्टेटमेंट, आधार कार्ड, पैन कार्ड जैसे केवायसी डॉक्यूमेंट्स और अच्छा सीबिल स्कोर चाहिए होगा। आमतौर पर 700 से 900 का सीबिल स्कोर अच्छा माना जाता है।
कार लीज़ पर लेने के लिए आजकल कई विकल्प मौजूद हैं। ज़ूमकार या रेव जैसे विकल्पों के अलावा अब कई मैन्युफ़ैक्चरर्स भी इस दौड़ में शामिल हो गए हैं। पिछले कुछ महीनों में एमजी मोटर इंडिया, मारुति सुज़ुकी, टोयोटा और टार्टा मोटर्स जैसी कंपनीज़ ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया है। अब सवाल यह उठता है, कि लोन के मुक़ाबले लीज़ पर लेना किस तरह से फ़ायदेमंद है? कारवाले को दिए गए एक इंटरव्यू के दौरान संजय गुप्ता, एमडी, कीलीज़िंग ने हमें इस बारे में कुछ अहम बातें बताई हैं।
गाड़ी लीज़ पर लेने पर ग्राहक, कंपनी को केवल असेट के इस्तेमाल का पैसा देता है, जबकि पंजीकरण, इंश्योरेंस, मैंटेनेन्स और अन्य चीज़ों का भुगतान ग्राहक को नहीं करना पड़ता। वहीं लोन में इन सभी का ख़्याल ग्राहक को ही रखना पड़ता है।
गुप्ता ने बताया, कि कार लोन के लिए ग्राहक को डाउन पेमेंट भी देना होता है, जो गाड़ी की कुल क़ीमत का एक बड़ा हिस्सा होता है। वहीं लीज़िंग में ग्राहक को बेहद कम या कभी-कभी बिल्कुल भी डाउन पेमेंट नहीं करना होता है, क्योंकि वह वीइकल के लिए हर महीने किराया भरता है।
उन्होंने आगे बताया, कि लोन के लिए आपको कलैटरल की ज़रूरत होती है, जो बैंक द्वारा आपके क्रेडिट स्कोर को देखकर तय किया जाता है। आप किस गाड़ी को लीज़ पर ले सकते हैं, यह आपके क्रेडिट स्कोर पर निर्भर करता है।
गाड़ी लीज़ पर लेने की सबसे बड़ी मुश्क़िल यह है, कि ग्राहक प्रति माह तय किलोमीटर्स तक ही गाड़ी को चला सकते हैं। ऐसे में जिन लोगों का हर महीने की यात्रा तय है, उनके लिए तो यह फ़ायदे का सौदा होगा, लेकिन जिनका सफ़र बढ़ता-घटता रहता है, वे नुक़सान में हो सकते हैं। गाड़ी लीज़ पर लेने के लिए किन बुनियादी चीज़ों की ज़रूरत होती है? हम आपको इसके बारे में अपने दूसरे हिस्से में बताएंगे। जिसके लिए हमारे साथ बने रहें।