हम में से ज़्यादातर लोग BS6 के एमिशन नियमों को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं। हर नई गाड़ी का BS6 नियमों के अनुरूप होना, क्यों ज़रूरी है? क्या होता है BS6? BS6 से जुड़े ऐसे ही कई सवाल आपके दिमाग़ में आते होंगे, इसलिए हमने यहां आपके इन्हीं जिज्ञासाओं को सुलझाने की कोशिश की है। भारत सरकार ने वर्ष 2000 में इंटरनल कम्बशन इंजन से निकलनेवाले वायु प्रदूषकों को सीमित रखने के लिए भारत स्टेज एमिशन स्टैंडर्ड्स (BSES) पेश किया था। सरकार ने BS2 और BS3 नियम वर्ष 2001 व 2005 में लाया था। देश के 13 बड़े शहरों में अप्रैल 2010 से ही BS4 एमिशन नॉर्म्स का पालन किया जा रहा था और अप्रैल 2017 से इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया।
वायु प्रदूषकों को नियंत्रित करने के लिए लागू किए गए नियमों को बनाए रखने के लिए सरकार को संघर्ष करना पड़ रहा था। इसलिए इस बार सरकार ने BS5 नियम की बजाय अप्रैल 2020 से सीधे BS6 नियमों को लागू करने की योजना बनाई, जिससे भारत यूएस और यूरोपियन एमिशन स्टैंड्डर्स के समकक्ष खड़ा हो जाएगा। इंटरनल कम्बशन इंजन्स कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), हाइड्रोकार्बन्स (HC), पार्टिक्यूलेट मैटर (PM), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (NOx) जैसे हानिकारकर प्रदूषक प्रोड्यूस करते हैं। अप्रैल 2020 से लागू होनेवाले BS6 नियमों में फ़्यूल यानी ईंधन की भूमिका अहम् है। लेकिन क्या हमें फ़्यूल के बारे में बहुत परवाह करने की ज़रूरत है? जानने के लिए आगे पढ़ें-
BS6 बनाम BS4 फ़्यूल टाइप
पेट्रोल BS6 अनुपालित इंजन्स कम्बशन की प्रक्रिया के बाद प्रोड्यूस होनेवाले प्रदूषकों को दुरुस्त करने में मदद करने के लिए डिज़ाइन और डेवेलप किए गए हैं। इसमें मौजूद एग्ज़ॉस्ट ट्रीटमेंट सिस्टम, NOx और PM जैसे हानिकारक प्रदूषकों को खींचने का काम करता है। वहीं डीज़ल BS6 अनुपालित इंजन्स के मामले में OEMs एक ऐसे फ़्यूल इंजेक्टर सिस्टम वाले कम्बशन चैम्बर डिज़ाइन पर काम कर रहे हैं, जो पूरे कम्बशन प्रक्रिया को रिफ़ाइन करता है। इस प्रक्रिया से फ़्यूल का बारीक़ एटमाइज़ेशन होता है, जिससे कम्बशन की पूरी प्रक्रिया बेहतर बनाने में मदद मिलती है। BS6 फ़्यूल में सल्फ़र की मात्रा 10mg/kg तक होती है, जबकि BS4 फ़्यूल में सल्फ़र की मात्रा 50mg/kg तक होती है। फ़्यूल में जितना कम सल्फ़र होगा, वह उतना ही साफ़ और बेहतर क्वॉलिटी का माना जाएगा। क्योंकि इस तरह का फ़्यूल कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स जैसे हानिकारक प्रदूषकों की उत्सर्जन मात्रा को कम करता है और हमारी हवा को साफ़ रखने में मदद करता है।
क्या BS6 गाड़ियां, BS4 फ़्यूल पर चल सकती हैं?
सामान्य सी बात है, कि BS6 अनुपालित गाड़ियां, BS6 फ़्यूल पर चलेंगी, वहीं ये नए नियमों के अनुरूप तैयार किए गए पेट्रोल इंजन्स BS4 फ़्यूल पर भी सुरक्षित ही रहेंगी। मौजूदा समय में केवल आगरा, दिल्ली और एनसीआर क्षेत्रों में ही BS6 पेट्रोल उपलब्ध है। वहीं दूसरी ओर बात करें BS6 डीज़ल इंजन की तो, वह केवल BS6 फ़्यूल पर ही चल पाएंगे। क्योंकि BS4 में मौजूद सल्फ़र की उच्च मात्रा BS6 इंजन के कैटलिटिक ऐक्शन, जो कि कम्बशन चैम्बर को बेहतर बनाते हैं, की प्रक्रिया को प्रभावित करेंगी। उम्मीद है, कि देशभर में BS6 डीज़ल और पेट्रोल, 1 अप्रैल 2020 से मिलने लगेंगे।
क्या BS4 गाड़ियां, BS6 फ़्यूल पर चल सकती हैं?
पेट्रोल वर्ज़न वाली गाड़ियां इस मामले में आपका साथ निभा सकती हैं। BS4 पेट्रोल वीइकल और BS6 पेट्रोल गाड़ी के बीच बहुत कम केमिकल्स का अंतर है, इसलिए यह गाड़ी, नए BS6 पेट्रोल पर चलने में सक्षम रहेगी। जबकि डीज़ल BS4 इंजन के मामले में यह बात लागू नहीं होती है। इसकी वजह है, BS6 डीज़ल में सल्फ़र की मात्रा का कम होना, जो कि इंजेक्टर्स के केमिकल लूब्रिकेशन प्रक्रिया को प्रभावित करेगी। जिसकी वजह से लंबे इस्तेमाल के बाद इंजेक्टर्स व BS4 डीज़ल इंजन को अंदरूनी तौर पर काफ़ी नुक़सान पहुंच सकता है। फ़्यूल के बहाव का पैटर्न बिगड़ सकता है और इससे कम्बशन की प्रक्रिया भी प्रभावित हो सकती है और एमिशन का स्तर बढ़ सकता है।