परिचय
दिल्ली से 60 किमी दूरी पर स्थित यह जगह भारतीय ऑटोमोटिव की दास्तां लिखने में बड़ी भूमिका निभाता है। यह देश में सबसे ज़्यादा बिकने वाली कुछ गाड़ियों की जन्मभूमि भी है। यही वह जगह है, जहां कम्प्यूटर स्क्रीन्स और क्ले मॉडलिंग स्टुडियो से निकलकर गाड़ियां असल ज़मीन पर दौड़ती हैं। 33 टेस्ट ट्रैक्स और तक़रीबन 250 टेस्टिंग और वैलिडेशन लैब्स से सुसज्ज है, यह जगह। इसी जगह मारुति ने अपने एक बेहद अहम मॉडल नई ग्रैंड विटारा को आकार दिया है और उसे असलियत के सांचें में ढाला है।
मारुति सुज़ुकी के रोहतक, हरियाणा स्थित रिसर्च और डिवलप्मेंट सेंटर में आपका स्वागत है। इस 600-एकड़ की फ़ैसिलिटी को 3,800 करोड़ रुपए के निवेश के साथ तैयार किया गया है, जहां गाड़ियों को उनकी तकनीक, क्रैश-टेस्ट, इंजन आदि पहलुओं पर जांचा-परखा जाता है। यह जगह काफ़ी गोपनीय है और यहां सेलफ़ोन इत्यादि का इस्तेमाल वर्जित है, इसलिए आपको शुरुआत में ही इन्हें जमा करना होगा।
ग्राहकों पर फ़ोकस
इस फ़ैसिलटी पर सुज़ुकी के लिए रिसर्च र डिवलप्मेंट किया जाता है और जापान के लिए मॉडल्स को तैयार किया जाता है। इस रोहतक प्लांट में वैश्विक मॉडल्स को ज़रूर तैयार किया जाता है, लेकिन इसका फ़ोकस भारतीय ग्राहकों की ज़रूरतों को पूरा करने की ओर भी है। इसी तर्ज पर हमें रोहतक के इस 250 आर ऐंड डी लैब्स को देखने का न्यौता दिया गया, क्योकि नई ग्रैंड विटारा ग्राहकों की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर जो तैयार की गई है।
इस सेंटर पर अतिरिक्त भार भी है। इसे भविष्य की टेक्नोलॉजीस को तैयार करने और ट्रेंड को भांपने का भी कार-भार सौंपा गया है। इसी कड़ी में रोहतक एडीएएस, 5G कनेक्टिविटी से जुड़ी तकनीक और लग्ज़री कार्स में मिलने वाले चुनिंदा फ़ीचर्स को बजट कार्स में जोड़ने की तैयारी में लगी हुई है।
यहां पर तात्कालीन सलूशन के रूप में आईसी इंजन्स को नए इमिशन नियमों के अनुसार अपडेट करने पर भी काम ज़ारी है। यह नए इंजन्स पर भी काम कर रहे हैं, जिन्हें इथेनॉल-हैवी E85 और E100 या बायो-सीएनजी जैसे वैकल्पिक फ़्यूल्स पर चलाया जा सके। सरकार के पैसेंजर वीइकल्स के नियमों में बदलाव पर यह मारुति का कुछ समय के लिए किया गया सलूशन होगा। और दीर्घकालीन सलूशन्स की बात करें, तो मारुति किफ़ायती, व्यावहारिक और आकांक्षापूर्ण हाइब्रिड्स और ईवीज़ पर काम कर रही है।
चलिए अब बात करते हैं, लैब्स की...
साउंड की जांच
पहला लैब हमने जो देखा, वह सेमी-एनइकोइक चैम्बर था। इसइसइसी जगह ग्रैंड विटारा एनवीएच पर काम किया गया था और इसे बेहतर बनाया गया। इसी दौरे पर जब हमने विटारा को चलाया तो हमें महसूस हुआ कि, मारुति ने विटारा की क़ीमत से जुड़ी उम्मीदों को पूरा करने के लिए इसे और रिफ़ाइन किया है। बता दें, कि मारुति सुज़ुकी ग्रैंड विटारा की क़ीमत लगभग 20 लाख रुपए तक पहुंच जाएगी। गाड़ी में यह रिफ़ाइन्मेंट चैम्बर और टेस्ट ट्रैक्स पर किया गया है।
मारुति लैब में कई प्रकार के माइक्रोफ़ोन्स और गाड़ी के अंदर 3D अकास्टिक कैमरा का इस्तेमाल करती है, ताकि गाड़ी में अलग-अलग तरह के असाधारण नॉइज़ लेवल्स को हटाया जा सके। नतीजों के आधार पर इंजीनियर्स गाड़ी के साउंड इंसुलेशन को बढ़ाने-घटाने पर काम करते हैं।
इसके बाद हम ड्राइवट्रेन टेस्टिंग लैब में पहुंचे। इसी जगह मारुति अपनी गाड़ियों को कम फ़्यूल में ज़्यादा से ज़्यादा दूरी तय करने में सक्षम बनाती है। बैंड की नई गाड़ी ग्रैंड विटारा भी इसी सूची में जुड़ने वाली है। लेकिन यह लैब केवल इतना ही नहीं करता। यहां टेस्ट बेड्स पर इंजन्स को चलाया जाता है, ताकि इसके टिकाऊपन, प्रभावी और एनवीएच होने को परखा जा सके। इन टेस्ट बेड्स पर असल ज़िंदगी की ड्राइविंग और इस्तेमाल की बनावटी कंडिशन तैयार की जाती है, यहां तक कि असहनीय तापमानों पर भी गाड़ी को जांचा जाता है। मारुति के अनुसार, इस लैब में अलग-अलग तरह के इंजन्स, मैनुअल व ऑटोमैटिक, आईसीई से लेकर हाइब्रिड और ईवी तक को टेस्ट किया जा सकता है। जिम्नी और ग्रैंड विटारा के 4डब्ल्यूडी और एडब्ल्यूडी ड्राइव कॉन्फ़िगरेशन्स के साथ लैब एफ़एफ़, एफ़आर, 2डब्ल्यूडी और एडब्ल्यूडी लेआउट्स को भी परख सकता है।
सड़क और लैब
इन सबमें, जिसमें मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा आया, वह था, टायर-कपल्ड लोड-सिमुलेटर, जहां गाड़ी के पूरे टिकाऊपन की जांच की जातीहै। आम भाषा में इसे समझें तो गाड़ी के चार पहियों को चार अलग जगहों (पोस्ट्स) पर रखा जाता है। ये पोस्ट्स हाइड्रॉलिकली सक्रिय होते हैं और एक-दूसरे से बिल्कुल अलग ढंग से सक्रिय हो सकते हैं। हालांकि, ये सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम से जुड़े होते हैं, जहां असल-ज़िंदगी के सड़कों की स्थिति को तैयार किया जा सकता है।
अत: यहां रम्बलर स्ट्रिप्स या प्लास्टिक स्पीड-ब्रेर्क्स की कड़ियों आदि का बनावटी एहसास तैयार किया जा सकता है। इस डेटा का इस्तेमाल कर गाड़ी के ट्रैवल, सख़्ती और डैम्पिंग आदि पर सस्पेंशन को तैयार किया जा सकता है। यही जांची गई ग्रैंड विटारा को जब हमने चलाया तो यह स्पीड ब्रेर्क्स पर काफ़ी सहज लगी। इसने बहुत उछाल न पैदा करते हुए पिछली सीट को काफ़ी ज़मीन से जुड़ा और संतुलित सस्पेंशन ट्रैवल दिया। और बाक़ी अन्य रोहतक के लैब्स की तरह इसे भी लगातार चलते रहने के लिए डिज़ाइन किया गया है, ताकि टेस्टिंग के टाइम को घटाया जा सके।
मुद्दे की बात
अंतत: हम क्रैश टेस्ट फ़ैसिलिटी में पहुंचे। इस तरह की फ़ैसिलिटी को देखना और समझना पत्रकारों के लिए काफ़ी आम बात है, लेकिन सोने पर सुहागा यह रहा, कि यहां हम असल में क्रैश टेस्ट के साक्षीदार बनें। मेरे 20 सालों के मोटरिंग पत्रकारिता में मैंने यह केवल पांच बार देखा है, जिसमें से यह मौक़ा पांचवीं बार में आता है। यक़ीन कीजिए कि, आप चाहे जितनी तैयारी के साथ आएं, इम्पैक्ट को देखने के बाद आपको झटका महसूस होता ही है। ख़ैर, इस इम्पैक्ट के बाद असल कहानी शुरू होती है, जहां पैसेंजर सेल्स को जांचा जाता है। देखा जाता है कि दरवाज़े खुल तो नहीं गए, इस लाखों की क़ीमत की गाड़ी में कोई जानलेवा चोट तो नहीं लगी। साथ ही काफ़ी संवेदनशील डमीज़ को जांचा जाता है। ऐसे कई सवालों को जब इंजीनियर्स सुलझा लेते हैं, तब गाड़ी को ग्रीन सिग्नल मिलता है और वह असलियत में सड़क पर जाने के लिए आगे बढ़ पाती है।
हमने ब्रेज़ा का 64 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार पर 40 प्रतिशत ऑफ़सेट क्रैश टेस्ट देखा। इसी तर्ज पर जीएनकैप भी अपनी स्टार रेटिंग्स देती है। जिन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है, उन्हें बता दें, कि ब्रेज़ा और ग्रैंड विटारा सुज़ुकी के टेक्ट यानी टीईसीटी ग्लोबल सी प्लेटफ़ॉर्म पर आधारित हैं। पुरानी ब्रेज़ा ने जीएनकैप में चार स्टार रेटिंग हासिल की थी, तो हमें उम्मीद है, कि नई और बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी। आगे चलकर मारुति 56 किमी प्रति घंटे और 64 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार पर टेस्ट करने की योजना में है। यह उम्मीद जताती है, कि मारुति की कार्स आगे चलकर और भी सुरक्षित हो सकती हैं।
अनुवाद: सोनम गुप्ता