परिचय
समृद्ध मिट्टी, लचीली घाटियों और फ़िरोज़ी रंग की कल-कल बहती नदियों वाले राज्य अरुणाचल प्रदेश पर यक़ीनन अरु यानी सूरज मेहरबान है। वर्ना शहरों में महंगी क़ीमतों पर बिकने वाले पौधे, यहां की सड़कों के किनारे यूं ही लहलहाते नहीं दिखते। इस राज्य को वनस्पतिज्ञ के लिए स्वर्ग क्यों कहा जाता है, इसका जवाब यहां क़दम रखते ही मिल जाता है। आइए, हम आपको सैकड़ों गुलाबों से लदी डालियों, रंग-बिरंगे ऑर्किड्स, सुनहरे फ़र्न्स, हरी-हरी पहाड़ियों और भीनी-भीनी ख़ुशबू लिए इस रेतीली मिट्टी पर हुए ट्रांस-अरुणाचल ड्राइव-2021 का रोमांचक सफ़र कराते हैं।
दिन 1: अरुणाचल की गोद में सुस्त दिन
डिब्रूगढ़एयरपोर्ट – नामसाई
एयरपोर्ट के लिए निकलने से पहले हमें अरुणाचल में प्रवेश के लिए रैपिड ऐंटीजन टेस्ट करना पड़ा। कोविड-19 की वजह से आजकल सफ़र करने से पहले ढेरों नियमों और सावधानियों को पालना पड़ता है। अब वह दिन कहां, जब ट्रिप का मतलब होता था, बैग पैक करना और बे-तकल्लुफ़ी से निकल पड़ना। ख़ैर, आजकल के माहौल को देखते हुए ये सावधानियां भी बहुत ज़रूरी हैं।
डिब्रूगढ़ एयरपोर्ट से तक़रीबन 114 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद हम पहुंचे नामसाई। जहां होटेल अरुण जीविता अगले दो दिनों के लिए हमारा ठिकाना बन गया।
दिन 2: ऐड्वेंचर 6 का ठप्पा
नामसाई
अगले पांच दिनों के लिए हमारी दो जनों की टीम को 2.2-लीटर डीज़ल इंजन वाली महिंद्रा थार का LX4-STR हार्ड टॉप वर्ज़न सौंपा गया। थार के साथ मिला हमें ऐड्वेंचर6 का नाम, जो अगले कुछ दिनों के लिए हमारी पहचान बन गई थी।
लंच में मिले बंगाल और अरुणाचल प्रदेश के मिले-जुले अंदाज़ में बनाए गए केले के तने का सूप, और लज़ीज़ लाल चावल की खीर का ज़िक्र न करना, दोनों स्वादिष्ट डिशेस के साथ नाइंसाफ़ी होगी।
क़दम-क़दम हमने नामसाई के स्थानीय बाज़ार को खंगाला और वहां की ओयेक, करमावा का साग़ जैसीस्थानीय साग़- सब्ज़ियोंको पकाने के तरीक़े भी जानें। करौंदे के आचार के साथ-साथ प्याज़ के पापड़ जैसे कई अनूठी डिशेस वहां के स्थानीय बाज़ार में मिलती हैं।
दिन 3: सफ़र का आगाज़
नामसाई से पंगसउ पास और हायुलियांग
नामसाई के सबसे चर्चित टूरिस्ट स्पॉट गोल्डन पगौड़ा के चित्त शांत प्रांगण की सैर के बाद अरुणाचल प्रदेश के मशहूर जनजाति ताई-खामति द्वारा सुंदर नृत्य प्रदर्शन किया गया। नाश्ते में केले के पत्ते में रैप किया गया चावल और गुड़ से बने मीठे पैनकेक जैसी एक स्वादिष्ट डिश, केले और सब्ज़ियों के कटलेट का स्वाद अब तक ज़ुबान पर है।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री पेमा खांडूने 34 गाड़ियों के हमारे कॉन्वॉय को फ़्लैग-ऑफ़ किया। पहले ही दिन की यह ड्राइव सबसे लंबी लगभग 321 किमी की थी। ठिकाना था, हायुलियांग। जिसके बीच भारत-म्यान्मार बॉर्डरपंगसउ-पास को भी देखा जा सकता है। तक़रीबन 80 किमी की ड्राइव के बाद आगे के रास्ते के लिए महिंद्रा ने टाइम-स्पीड-डिस्टेंस (TSD) रेस की शुरुआत की। बिना नेटवर्क वाले इलाक़ों में बुक के ज़रिए मैप देखना और अपनी राह तलाशना हमें इस गूगल-मैप वाली दुनिया में टेक्नोलॉजी के बिना सफ़र करने के गुर सिखा गया। सोने पर सुहागा यह रहा, कि इस रेस में हमारी कार ऐड्वेंचर 6 ने जीत हासिल की। सही गुणा-भाग के साथ स्पीड बनाए रखने और तय समय पर निश्चित दूरी तकपहुंचने पर आधारित इस रेस को जीतना हमारे लिए काफ़ी रोमांचक अनुभव रहा।
लैंड-स्लाइडिंग यानी पहाड़ों का गिरना, घाटियों पर काफ़ी आम बात है और इस वजह से कुछ-कुछ रास्ते काफ़ी पथरीले और दुर्गम थे। लेकिन थार के उम्दा सस्पेंशन और बेहतरीन ग्राउंड क्लीयरेंस ने इस तरह के रास्तों को इतना मुश्क़िल महसूस नहीं होने दिया।
दिन 4: मौसम का बदलता मिज़ाज़
हायुलियांग से काहो
फ़िरोज़ी रंग की ख़ूबसूरत लोहित नदी के किनारे लगे टैंट्स में रात गुज़ारने के बाद अगली सुबह गाड़ी को रीफ़्यूल कर हम हायुलियांग से लगभग 100 किमी दूर वलॉन्ग के लिए निकल गए। वलॉन्ग जाने वाले पथरीले रास्तों पर फ़ोर-वील ऐंगेज कर आसानी से पूरा रास्ता पार कर लिया। जहां पिछले दो दिन गुलाबी सर्द मौसम में गुज़रे, वहीं अब बारिश के आसार नज़र आने लगे थे। पहाड़ियों की यह एक बात मुझे हमेशा ही रुझाती है। पल में यहां मौसम का मिज़ाज़ करवट ले लेता है। कैम्प साइट पर वलॉन्ग की महिलाओं द्वारा स्थानीय नृत्य और युवाओं द्वारा फ़ैशन शो का उम्दा प्रदर्शन किया गया।
बहरहाल, रात जैसे-जैसे बूढ़ी होती गई, बादलों का यौवन कुलांचे मारने लगा। तेज़ बारिश की वजह से कैम्प में रहना थोड़ा मुश्क़िल हो गया और इस मुश्क़िल ने हमें होम-स्टे में रहने का सुनहरा मौक़ा दिया।
दिन 5: सरहद पार का नज़ारा
काहो - डॉन्ग- वलॉन्ग - हायुलियांग
काहो जाने के रास्ते में भारत और चाइना के बॉर्डर को क़रीब से देखा जा सकता है। काहो को भारत का पहला गांव कहा जाता है। यहां हमारा स्वागत वहां के स्थानीय समुदाय मेयोर द्वारा चोय यानी याक के दूध व मक्खन से बने चाय और चावल के चिवड़ा 'ककूम' के साथ पूरी गर्मजोशी से किया गया। यहां के लोग मेयोरभाषा समझते और बोलते हैं, लेकिन स्थानीय तौर पर अच्छी हिंदी भी बोल लेते हैं। वलॉन्ग में बॉर्डर के पास ही क़ुदरत के ख़ूबसूरत अजूबे हॉट स्प्रिंग यानी गर्म कुंड मौजूद है, जहां आप नैचुरल स्पा का मज़ा ले सकते हैं।
ग़ौरतलब है, कि यहां के रास्तों पर ट्रैफ़िक कम होने की वजह से आप अटका हुआ महसूस नहीं करते। वर्ना घाटियों पर घंटे-घंटे भर का जाम ड्राइव के अनुभव को ख़राब कर सकता है।
दिन 6: आख़िरी पड़ाव
परशुराम कुंड - तेज़ू – बोमजीर
तक़रीबन 360 सीढ़ियों की चढ़ान और उतार के बाद हमारे सामने कल-कल बहता साफ़-सुथरा-सा परशुराम कुंड था। वहां के पंडों और स्थानीय लोगों के बीच कुंड के निर्माण के बारे में कई क़िस्से और किंवदंतियां चर्चित हैं।
अगले पड़ाव बोमजीर तक का रास्ता तेज़ रफ़्तार के शौक़ीनों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। यहां के चौड़े हाईवेज़ पर हमें तीन आंकड़ों वाली रफ़्तार पर भी थार को चलाने का अनुभव मिला। पिछले कई दिनों तक पतली-पतली घाटियों में ड्राइव का मज़ा लेने के बाद चौड़ी सड़कों पर थार को हवा से बातें करता देख, इसके शहर व हाईवे परफ़ॉर्मेंस को लेकर भी यक़ीन हो आया। बात करें, थार के डीज़ल वर्ज़न के माइलेज की तो हमें घाटियों में 15 से 19 किमी प्रति लीटर की फ़्यूल इफ़िशंसी मिली, वहीं हाईवे पर यह आंकड़ा थोड़ा और बेहतर हो गया था। अगले कैम्प साइट पर हमारा स्वागत आदि समुदाय की महिलाओं ने लोक गीत और लोक नृत्य से किया। अपने पारंपरिक परिधानों, मासूमियत भरे व्यवहार, आसक्त आंखों और मीठी आवाज़ में उन्होंने हमें स्थानीय संगीत सुनाया। 14 दिनों के इस ट्रिप के लिए कारवाले का यह आख़िरी ठिकाना था। यहां आप नैसर्गिक ढंग से चावल से बियर, जिसे यहां अपॉन्ग कहते हैं, बनाते हुए देख सकते हैं।
अंतिम राय:
डिब्रूगढ़ से बोमजीर तक के तक़रीबन 800 किमी के सफ़र में मैंने लगभग हर तरह के टेरेन में थार को चलाने का अनुभव लिया। पहाड़ियों, घाटियों, पथरीली राहों और लगभग एक से डेढ़ फ़ीट तक के पानी से भरे रास्तों में भी थार बिल्कुल भी संतुलन खोती नज़र नहीं आई।
कुल मिलाकर भूटान, म्यांमार और चाइना इन तीन देशों से अपनी सीमा साझा करने वाले इस राज्य की ख़ूबसूरती यहां के लोगों के मिलनसार व्यवहार से और भी बढ़ जाती है। स्थानीय लोगों का कहना है, कि यहां पग-पग में भाषा और जनजाती दोनों बदल जाते हैं। वैसे वे किसी भी भाषा को बोलते हों, हर समुदाय के लोगों की गर्मजोशी और भोली-सी मुस्कान यक़ीनन आपका मन मोह लेगी। मुर्गी से लेकर चूहे तक यहां पका कर खाने की परंपरा है। तो यदि कोई आपको डिनर में रेशम के कीड़ों की सब्ज़ी या चूहे का सालन ऑफ़र कर दे, तो चौंकिएगा नहीं। किवी और पीच वाइन स्थानीय ड्रिंक के तौर पर चर्चित हैं। मांसाहारियों के लिए यह जगह काफ़ी प्रयोगात्मक है, तो वहीं शाकाहारियों के लिए विकल्प की कमी खलती है।
यक़ीनन प्रकृति की गोद में मज़ेदार ड्राइव के साथ आप सुंदर नज़ारों को अपनी यादों में जज़्ब कर ले जा सकते हैं।
महिंद्रा थार के बारे में पूरी जानकारी पाने के लिए देखें नीचे दिया गया वीडियो।