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क्या होता है एडीएएस?
एडीएएस या एड्वांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम एक ऐसा सिस्टम है, जो गाड़ी को ज़्यादा सुरक्षित और सुविधाजनक बनाती है। एडीएएस टेक्नोलॉजी सेंसर्स, कैमरा और रडार की मदद से गाड़ी के आस-पास के माहौल का पता लगाकर काम करता है। एडीएएस ड्राइवर को डिस्प्ले पर साउंड, वाइब्रेशन और सिग्नल के माध्यम से संकेत देकर, दुर्घटना से बचाव करने में मदद करता है।
एडीएएस के लेवल्स
एडीएएस टेक्नॉलॉजी को पांच लेवल्स तक बांटा गया है, जो इस प्रकार हैं:
लेवल्स 0- नो ऑटोमेशन:
इसमें किसी भी प्रकार का एडीएएस फ़ीचर नहीं होता और ड्राइविंग के सभी पहलुओं के लिए ड्राइवर ही अकेला ज़िम्मेदार होता है।
लेवल 1- ड्राइवर असिस्टेंस:
इसके अंतर्गत कार में ड्राइवर के लिए लेन डिपार्चर वॉर्निंग और अडैप्टिव क्रूज़ कंट्रोल जैसे एडीएएस फ़ीचर्स होते है। इसके बावजूद ड्राइविंग करते समय ड्राइवर का ही दायित्व ज़्यादा होता है।
लेवल 2- पार्शियल ऑटोमेशन:
इसमें दो या दो से ज़्यादा स्टीयरिंग या एक्सीलरेशन जैसे एडीएएस फ़ीचर्स होते हैं, जो ड्राइवर को ड्राइविंग में मदद करते हैं, लेकिन ड्राइवर को सतर्क रहने की ज़रूरत होती है।
लेवल 3- कंडिशनल ऑटोमेशन:
इसमें परिस्थिति के अनुसार एडीएएस फ़ीचर्स काम करते हैं। उदाहरण के लिए हाइवे ड्राइविंग, जहां सिस्टम स्टार्ट रहने पर ड्राइवर स्टीयरिंग वील से अपना हाथ हटा सकता है, लेकिन फिर भी ड्राइवर को सावधान रहने की ज़रूरत होगी।
लेवल 4- हाई ऑटोमेशन:
इस लेवल पर गाड़ी अधिकतर स्थितियों में ख़ुद ही चलती है और ड्राइवर को विशेष मौक़ों पर ही ध्यान देने की ज़रूरत पड़ती है।
लेवल 5- फ़ुल ऑटोमेशन:
एडीएएस के पांचवें लेवल पर गाड़ी ज़्यादातर परिस्थिति में ड्राइवर के बिना ही ख़ुद ही चलने में सक्षम होती है।
एडीएएस में कौन-कौन से हैं फ़ीचर्स?
एड्वांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम में कई तरह के फ़ीचर्स ऑफ़र किए जाते हैं, जो मॉडल और सेफ़्टी के स्तर के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। सामान्य रूप से दिए जाने वाले एडीएएस फ़ीचर्स इस प्रकार हैं:
लेन डिपार्चर वॉर्निंग- यह फ़ीचर गाड़ी के लेन से हटने के समय ड्राइवर को अलर्ट करता है।
ब्लाइंड स्पॉट मॉनिटरिंग- यह दूसरी गाड़ियों को देखते हुए ड्राइवर को आगाह करता है, कि इस समय लेन को बदलना ठीक नहीं है।
अडैप्टिव क्रूज़ कंट्रोल- यह फ़ीचर सेंसर की मदद से आगे चल रही गाड़ी की स्पीड और दूरी के आधार पर गाड़ी की स्पीड को तय करता है।
फ़ॉरवड कोलिज़न वॉर्निंग- यह फ़ीचर आगे चल रही गाड़ी से टकराव होने से बचाता है। यह ड्राइवर को ब्रेक लगाने के लिए आगाह करता है।
ऑटोमैटिक इमरजेंसी ब्रेक- सेंसर की मदद से गाड़ी टकराने की स्थिति में यह फ़ीचर ऑटोमैटिकली आपातकालीन ब्रेक लगाने में सक्षम होता है।
ट्रैफ़िक साइन रिकग्निशन- यह फ़ीचर कैमरा की मदद से स्पीड लिमिट जैसे ट्रै़फ़िक साइन को पहचान कर डिस्प्ले करता है।
हाई बीम असिस्ट: हाइवे और रात के वक़्त यह फ़ीचर काफ़ी महत्वपूर्ण हो जाता है। कैमरा और सेंसर्स की मदद से कार आगे ज़्यादा ट्रैफ़िक के चलते ऑटोमैटिकली लो बीम पर चली जाती है, जिससे की ट्रैफ़िक को आसानी से देखा जा सकता है और फिर परिस्थिति के अनुसार कार दोबारा हाई बीम पर लौट आती है।
रियर क्रॉस ट्रैफ़िक अलर्ट: यह फ़ीचर पार्किंग के समय ड्राइवर के काम आती है। यह सेंसर्स और कैमरा की मदद से कार के पीछे के बारे में संकेत देता है।
ड्राइवर ड्राउज़ीनेस डिटेक्शन: यह फ़ीचर ड्राइवर के व्यवहार के बारे में पता लगाता है और ड्राइवर को नींद आने पर चेतावनी देता है।
भारत में एडीएएस फ़ीचर्स से लैस गाड़ियां
भारत में धीरे-धीरे ब्रैंड्स अब एडीएएस फ़ीचर्स को अपनी गाड़ियों में शामिल कर रही हैं। इस सूची में एमजी एस्टर, एमजी हेक्टर व हेक्टर प्लस, महिंद्रा XUV700, हुंडई ट्यूसॉन, टाटा हैरियर व सफ़ारी, टोयोटा इनोवा हायक्रॉस, होंडा सिटी ई: एचईवी और दूसरे प्रीमियम सेग्मेंट कार्स में यह सुरक्षा फ़ीचर उपलब्ध हैं।
भारतीय सड़कों के लिए कितना उपयोगी है एडीएएस?
दूसरे देशों की तरह भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर अभी बहुत ज़्यादा एड्वांस नहीं है। साथ ही भारतीय सड़कों का साइनेज सिस्टम भी उच्च स्तर का नहीं है, जिससे की लेन डिपार्चर वॉर्निंग सिस्टम पर असर पड़ सकता है।
भारत एक घनी आबादी वाला देश है, यहां के सड़कों पर दो-पहिया, तीन-पहिया, बड़े वाहन दौड़ते नज़र आते हैं, जिससे की ट्रैफ़िक जैसी समस्या से आए दिन सामना होता है, जो एडीएएस टेक्नोलॉजी के लिए एक बड़ी चुनौति है।
बावजूद इसके आगे टकराव से बचाव, आपातकालीन ब्रेक जैसे एडीएएस टेक्नोलॉजी की मदद से भारत में सड़क दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है। सरकार धीरे-धीरे इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने और सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए नए नियम तैयार कर रही है। इसे देखते हुए भविष्य में एडीएएस फ़ीचर काफ़ी महत्वपूर्ण साबित होगा।
अनुवाद- धीरज गिरी